...

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वो मिले तो कामिल जहान हो जाए...
वो रोशनी है सितारों की
वो राहत झील किनारों की
उसकी रज़ा से चमन खिलता है
वो मलिका है बहारों की...

वो मन्नत है जो मांगी
किसी पीर की मज़ार पर
वो इनायत है जो होगी
हर उल्फत से बेज़ार पर...

वो दिखे तो आहें ताज़ी हों
हिज्र के किस्से माज़ी हों
हो तीरगी उसकी ज़ुल्फ़ों की
शायर रात कहने को राज़ी हों...

वो इबारत बुल्ले शाह की है
वो शोहरत शहंशाह की है
सूरत उसकी इलहाम सी
वो इबादत परवरदिगार की है...

वो चले तो पाक ज़मीन हो जाए
वो उड़े तो आबाद आसमान हो जाए
वो छुए तो रंगत हासिल हो
वो मिले तो कामिल जहान हो जाए...
© Harf Shaad