...

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सैलाब आंखों का
मैने नहीं चाहा था की तुम
हमारी विरह की कविताएं पढ़ो

मैं चाहती थी तुम पढ़ो
हमारी पहली मुलाकात से
आखरी सांस तक के साथ को

जो रिश्ता खत्म होना चाहिए था
सांस के साथ
वो खत्म हुआ
एक अधूरे संवाद के साथ

वो संवाद जिसमे
तुम नहीं सुन पाए
मेरी चीखें

तुम तो कहते थे
तुम्हे नही पसंद
मेरी नम आंखे
जानते हो
एक सैलाब आया था
उन्ही आंखों में
तुमसे अलग हो कर

मेरी वो आंखें
जिनमे तुम्हे जमाना दिखता था
कई दिन नहीं देखा सूरज उन्होंने
कई रात तकिए गीली करती रहीं

मैं चाहती हूं
की बड़े हों ही नही मेरे बाल
एक बार कटा देने के बाद
तुम्हे जो जो पसंद था मुझमें
मैं वो सब खो देना चाहती हूं
और इस कोशिश में
मैने एक रोज खो दिया
खुद को भी

बीते दिनों जब देखा
आईना
पहचान नहीं पाई
पूछ बैठी
कौन हो तुम?

शायद अब कभी भी
मैं नहीं बन पाऊंगी वो
जो थी
तुमसे मिलने से पहले
तुमसे अलग होने के बाद
मैं
कोई और हूं


©प्रिया
10.07.23



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