...

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क्यों!
क्यों आज फिर उसकी याद बेइंतेहा आई है,
क्यों ये आँखें इतने वर्षों से सूखी, आज एक पल में भर आई है।
क्या ये इनायत भी अल्लाह से मैंने ही पाई है?
माना कि इसमें भी उसकी मरज़ी रही होगी,
सोचती हूँ मैं एसी क्या गलती मुझसे हुई होगी
कि मैं उसके आँचल से भी पराई हो गई!
शुक्रिया तेरा! मेरे ईश्वर!
लेकिन एक गुज़ारिश तुझसे होगी,
दे मुझे सज़ा मेरी सारी गलतियों की,
लेकिन भुगतने के लिए ज़िंदा तो रख,
लोग यहाँ सब कहते है मैं मरहूम हो गई!

© J