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एहसास ए ज़िंदगी
एहसास-ए-ज़िंदगी से जुड़ा एक लेख है ये..
मन के अंतर्द्वंद का ही सहज उल्लेख है ये।

वाकिफ हूं कि बहुत है इस जहां में हम-सा मुस्कुराने वाले.. मुस्कान के ही परदे से अपना हर एक ज़ख़्म छिपाने वाले।

लोग देखकर सोचते हैं कि खुश है जो,वही तो मुस्कुराता है पर...मुस्कुराने वाला जानता है कि मुस्कान के पीछे हर दर्द छुपाता है।

जानता है वह.. कि मुस्कान से सामान्य दिखना आसान है.. दर्द-ए-बयान से लोग नहीं समझेंगे कि वह कितना परेशान है।

फिर भी कभी-कभी जब यह मुस्कान धूमिल हो जाती है.. तब लोगों को क्या हाल बताए,यही बड़ी मुश्किल हो जाती है।

लोग भी अचरज से पूछते हैं कि तुम उदास कैसे हो??? सही भी है.. हंसते हुए चेहरे के दर्द पर विश्वास कैसे हो।

यह तो एक कारण है कि क्यों लोगों को हाल बता भी नहीं पाते..
उलझन से बचने के लिए हम से कितने लोग अपना दर्द जता भी नहीं पाते।

कभी-कभी क्या होता है कि दर्द भी बिना कहे दिखाई देता है..
'डॉक्टर को दिखाओ दवा नहीं लेती' ...तब लोगों का ऐसा सवाल होता है..
अब कैसे बताया जाए उन्हें कि अपनी शक्ति से ना जाने कितना कुछ करके तब इंसान बेहाल होता है।

फिर कुछ लोग ठीक होने के इंतजार में "अब कैसे हो, कैसे हो?" बार-बार यही प्रश्न करते हैं..
कई बार तो ना ठीक होने पर भी "हां ठीक हूं" कहकर सब खामोश रहते हैं।

ऐसा नहीं कि उदासी हमेशा होती है,खुशियां भी आती हैं..
पर बार-बार टूटते-टूटते कुछ ख्वाहिशें चूर-चूर हो जाती हैं। फिर लगता है अब क्या करूं कहां जाऊं जाने कहां किनारा है..
बिना पतवार की है जीवन नैया,अब तो बस *ईश्वर* एक सहारा है।

जब जब खुशियां आती हैं, दिल फिर से नई उम्मीद जगाता है..
"सब कुछ ठीक हो जाएगा" यही सोचकर इंसान फिर से मुस्कुराता है।

आखिर में बस इतना कहूंगी.. माना कि भाव-अभिव्यक्ति मेरी है इसका आधार मैं हूं।
पर जो भी गुजरे हैं ना इन लम्हों से.. उनका दिल कहेगा इस लेख का क़िरदार मैं हूं।




© Shivani Srivastava