...

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सफ़र...
जिंदगी का ये अंजाम रहा पूजा सफ़र हर घड़ी अनजान रहा
मालूम है मंज़िल, फिर भी ये आदमी बड़ा है हैरान रहा
चलता रहा हर पहर, घड़ी भर की सुध नहीं
मालूम है शहर की ख़बर, पर पूजा ख़ुद की ख़बर नहीं
किसी और के जैसा बनने की चाह हैं सब में
बस ख़ुद ही बनकर रहने की पहल नहीं
सुलझी सी चीज़ों में उलझा हैं, उलझन जैसी कोई उलझन नहीं
आप ही उलझाता चला गया पूजा, उलझाने की कोई बात नहीं
मैया,बाबा,भाई, बहन, दोस्ती,यारी , प्यार, महोब्ब्त
पूजा इन रिश्तों की तो अहमियत कोई ख़ास नहीं
बचपन से जबानी, जबानी से बुढ़ापा
सफ़र की ही है रियायतें
अब वो भी बची , राजाओं के पास नहीं
कहता है हर शख़्स पूजा, हूं राजा अपने जीवन का
पण पूजा इसने तो आगले पल की भी ख़बर कुछ ख़ास नहीं
चलता रहा कोई काम के संग आठों पहर
पर ख़ुद संग एक पल की भी याद नहीं
सफ़र में हैं हर कोई यहां पूजा,
पण सफ़र कोई ख़ास नहीं


© 💞 पूजाप्रेम💞