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अब तो ज़िंदगी
क्या गम है ये तो दिल भी नही जानता,
क्यो खामोश है ये होंठ, ये तो दिमाग भी नहीं जानता,
कहा ले जाएगी ये किस्मत की लकिरे, ये तो पैर भी नही जानते,
होशलो की अब बात नही होती,
कदम कदम पर गिरने का डर अब खत्म नही होता।
हर रास्ते को मंजिल समझने लगते है,
मिले कोई मुसाफिर तो उसे भी अब तो हमदर्द समझने लगते है।
क्या होगये है अब तो,
की खुदके दर्द को भी अब तो अपना साथी समझने लग गए है।
दुनिया की बाते करने वाले ये लव्ज़ अब तो खामोश ही रहते है,
क्यो खामोश है ये होंठ, ये तो दिमाग भी नहीं जानता,
कहा ले जाएगी ये किस्मत की लकिरे, ये तो पैर भी नही जानते,
होशलो की अब बात नही होती,
कदम कदम पर गिरने का डर अब खत्म नही होता।
हर रास्ते को मंजिल समझने लगते है,
मिले कोई मुसाफिर तो उसे भी अब तो हमदर्द समझने लगते है।
क्या होगये है अब तो,
की खुदके दर्द को भी अब तो अपना साथी समझने लग गए है।
दुनिया की बाते करने वाले ये लव्ज़ अब तो खामोश ही रहते है,
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