...

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कुछ नहीं मैं तेरे बिन...
चंद लफ़्ज़ों के मेल से , बस एक पंक्ति कहलाती थी मैं ,
छु कर कलम ने अपनी लबों से मुझे ,
नज़्मों का एक नाम दिया...!
नज़्म बन कर मैं सजती रही हर कोरे कागज़ पर...
स्याही की महकने मेरे तन बदन में इत्र घोल
दिया..!

जयश्री✍🏻