...

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उम्मीदों से बना इंसान.....
उम्मीदों से बना इंसान
क्यों बना फिरता है पाषाण,
चलना आता नहीं है
वो दौड़ना समझते है आसान,
छत की दीवारों ऊंची लगती है
और वो छूना चाहते है आसमान,
नगर के उजाले ह्रदय में चुभते है
वो भरना चाहते है आत्माभिमान,
उम्मीदों से बना इंसान
कराहता है क्यों जो है अनजान।
© Annu Rani💦