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आश्रय
'आश्रय' की चाह में, समर्पण की राह में
चल पड़े हम वीर देखो, प्रेम के उत्साह में
एक ही संकल्प है अब, नीर का निर्माण हो
मन समर्पित, तन समर्पित और प्रस्तुत प्राण हों
'आश्रय' के नाम पथ पर, आश्रय सबका बने
शूल कोई लाख बोए, हम कुसुम कोमल बने
मन में व्रत बस त्याग हो एक, और पग-पग सत्य के
हो भला हर जीव का, ये काम हों बस नित्य के
हम सभी मिलकर सभी का, बन सकें नूतन सवेरा
ये धरा स्वर्णिम सी चमके, हो प्रकृति का रंग सुनहरा
निर्बलों की ढाल बनकर, पिछड़े जन की चाल बनकर
दोषियों का काल बनकर, एक नई मिशाल बनकर
हम रचें इतिहास एक, जिसमें सभी खुशहाल हों
सबको रोटी, सबको कपड़ा, सबको छत की ढाल हो
हों सभी शिक्षित, सुसज्जित, वेश, मन और कर्म से
जाति की गाठें ना पनपे, द्वेष ना हो धर्म से
हम बने एक नया भारत, रूप से ना, मर्म से
ना किसी के सामने, झुकना पड़े कभी शर्म से
हम चलें या ना चलें लोगों की ढर्री लीक पर
पर बुने राहें नई, नई संस्कृति की सीख पर
है हमे विश्वास ख़ुद पर, ये सभी साकार होगा
अब नए एक विश्व का, एकदम नया आकार होगा
जोड़ कर सब मुट्ठियों को, खोलकर सब गुत्थियों को
विश्व गुरु बनने का सपना, क्षितिज के इस पार होगा.....
© Er. Shiv Prakash Tiwari