...

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सारांश
मुद्दतों बाद ये दिल माना था
बड़ी मुश्किलों से टूटे को जोड़ा था
सारी दुनिया छोड़ बस इक तुम्हे ही जाना था
अब जो ये दूरियां पल रही है
दिल दुखता बड़ा है
ऐसा लगता है ज़ख्म पुराने उभर आए है
के अब आंखें रोती बहोत है
एहसास होता है तुम्हारे खोने का
जैसे पहरेदार की बेखबरी
बता देती हैं अनहोनी के होने का
अब थकान सी लगती है,
अब और रूठे मनाने का खेल
नहीं होगा हमसे
अब बस इतनी इच्छा है
अब न कोई मुनीम मिले
जोड़े टूटे टुकड़ों को
ना कोई ऐसा हकीम मिले।

© preet