ग़ज़ल
आज जल्वे अजल के देखूंगा
उसके दर से निकल के देखूंगा
इस से पहले की फिर नदामत हो
मैं ज़रा और चल के देखूंगा
बात मेरी अगर नहीं मानी
फिर मैं लहजा बदल के देखूंगा
क्या ख़बर मैं भी फिर संवर जाऊं
तेरी सोहबत में पल के देखूंगा
आज सारी शिकायतें होंगी
आज तुम को संभल के देखूंगा
शाबान नाज़िर
उसके दर से निकल के देखूंगा
इस से पहले की फिर नदामत हो
मैं ज़रा और चल के देखूंगा
बात मेरी अगर नहीं मानी
फिर मैं लहजा बदल के देखूंगा
क्या ख़बर मैं भी फिर संवर जाऊं
तेरी सोहबत में पल के देखूंगा
आज सारी शिकायतें होंगी
आज तुम को संभल के देखूंगा
शाबान नाज़िर
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