...

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सफर लिप्साओ का......
ख्वाहिशो का थाम दामन
चलते फिरते है कदम
तिश्नगी सी है अभी जिनसे
टूटने का डर वही ,मुट्ठी को बांधी है दृढ़ता
क्या पता कल हो , नही
छोड़कर हसरत का कारवां
जाए हम अब किस डगर
बिसराकर हर जग के नाते
तुझको ही जिया पकड़
न मिले जो ऐ,कहानी बन तो जायेगे मगर
होगा तू गुमनाम भी
होगा नही रुतबा तेरा
मुझमे जन्मा तू कही
शामिल हूँ मै तुझमे जरा
बदले तूने नाम कितने,फितरत न बदली अब तलक
था भगाया कल भी मुझको
आज भी है कहां मिला
कर दे इक इशारा भी तो
त्यज दूं हर क्षण की हंसी
पर ठहर जा थोड़ा सा तो तू
सूझे न कोई राह ,नगरी
चल रहे मोह मे ,सुध है न अब निज स्वार्थ की
होकर विलग हर भाव से
खोया है तुझमे अस्तित्व भी।
है सोच का गहरा सा तम
न मिलता कोई भी हल अगर
धीरज की बांध यह पोटली , है चल रहे खोये कदम।