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कुरुक्षेत्र (वो युद्ध बड़ा भयंकर था)


कुरुक्षेत्र की भूमि पर, जब धर्म का संग्राम हुआ,
अधर्म की हर चोटी पर सत्य का हुंकार हुआ।
गाण्डीव की प्रत्यंचा थमी नहीं, तीरों का आघात था,
धर्मराज के वचनों में, युग का नया प्रारंभ था।

अर्जुन की शंका जब गहरी, मन में व्याकुलता आई,
माधव ने गीता का उपदेश दिया, हर बाधा पर विजय पाई।
"कर्म करो हे पार्थ," कहा, "फल की चिंता छोड़ दो,
धर्म की राह कठिन है पर, सत्य का तुम आलोक लो।"

कर्ण का अद्भुत तेज था, पर साथ नहीं था भाग्य का,
दानवीर का समर्पण अद्वितीय, पर छला गया संसार का।
रथ का पहिया जब धरा में धंसा, मृत्यु ने पास बुलाया था,
माधव ने अधर्म का खेल रचा, नियति ने भी सिर झुकाया था।

भीम की प्रतिज्ञा गूंज उठी, दुर्योधन की जड़ें...