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कैसी कस्मकस है ये ख़ुदा मेरे....
कैसी कस्मकस है ये ऐ ख़ुदा मेरे,,,,
मैं और मेरा ये पागल-सा तड़पता हुआ दिल हर रोज आँखें खुलने से आँखें बन्द होने तक उसके messages के इंतजार में अन्दर ही अन्दर मर जाता है
Chats on कर के ना जाने कितनी बार keyboard पर उँगलियों को टक-टककर के लिखी भी है मैंने अपने इस दिल की बातें
हाँ सोचा है कई बार, कि चलो आज मैं ही अपनी तरफ से बातें शुरू करूं, मग़र
अचानक दिल से कोई आवाज़ आती है, कि हालात और तड़प तो उसके दिल की भी मुझ-जैसी ही होगी ना शायद, तो मैं ही क्यूँ बढूँ आगे
फ़िर messege sent की जगह backspace पर मेरी उँगलियाँ अपने कदम रखती हैं, और
अपने दिल में दबे इस पागलपन वाले प्यार के बीच में human ego यहीं पर आकर अड़ जाता है
हाँ वैसे उसने बताया था, बहुत चाहता है बचपन से ही मुझे वो
और उसकी सादगी की तरफ देखती हूँ ना जब मैं, तो जी चाहता है कि मैं भी उसकी इस बेइंतिहा मुहब्बत का एक झटके में इक़रार करके उसे चीख़-चीख़कर बताऊँ की कितने सिद्दत से चाहती हूँ मैं भी उसे, मग़र
अभी मेरे ख्वाबों के पुल बने भी नहीं होते, कि इनको टूटने में ज़रा देर नहीं लगती
दरअसल मेरे इन सलोने ख्वाबों के रस्ते में मेरा घर है,
मेरा हर ख़्वाब मेरे घर जाकर मेरी माँ, मेरे बाबा के मासूम शक्ल की तरफ देखता है, और
हक़ीक़त की सीढियां चढ़ने से पहले ही ये टूटकर बिखर जाता है
खैर जो भी हो...
वो मेरा है या नहीं, ये भी मालूम नहीं
मग़र, वो बेचारा ही जब messages करता है ना अरसों बाद बेचैन होकर, तब मेरे भी ये बेचैन-दिल ख़ुद को उसका एक अच्छा दोस्त बताकर ही, उसको उसके हर messages का reply कर जाता है
कि हाँ, कैसी कस्मकस है ये ऐ ख़ुदा मेरे...
मैं और मेरा ये पागल-सा तड़पता हुआ दिल हर रोज आँखें खुलने से आँखें बन्द होने तक उसके messages के इंतजार में अन्दर ही अन्दर मर जाता है

© Kumar janmjai