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मेरी चाय का नुस्खा
शादी से पहले जब मुझे खाना बनाना नहीं था आता।
तब भी मेरी चाय का नुस्खा सब को था भाता।।

पूछते थे सभी मुझे की खुद तो चाय पीती नहीं तो सवाधिष्ट कैसे बनाती हो?
अपनी चाय का नुस्खा हमें क्यों नहीं बताती हो!!

हंस कर बोल देती थी अपना यह ख़ास नुस्खा कैसे मैं बतलाऊं।
चाय नहीं एहसास है मेरे कैसे मैं समझाऊं।।

लो आज आपने नुस्खे को लफ्जो में बयां करके हूं बताती।
सुनो आज मेरी चाय के दीवानों की में चाय कैसे हूं बनाती।।

मेरी एहसासों की गरमाहट जैसी अग्नि में अपने पारदर्शी दिल जैसे पानी को सेकती हूं।
अपनी मुस्कुराहट जैसी ताज़गी वाली चाय पत्ती फिर उस एहसासों पर उबल रहे दिल पर बिखेरती हूं।
अपनी वाणी सी मधुरता सी शक्कर को उसमें मिलाती हूं।
अपनी रूह की सौंधी खुशबू जैसी इलायची, कूट कूट कर डालती हूं।
अपने मासूम प्यार सा पवित्र तुलसी का अर्क उसको लगाती हू।
बस इसी तरह अपनी रूह से दिल तक सब डाल कर.... मैं चाय बनाती हूं।।

मेरे एहसास, रूह और दिल ही इस नुस्खे को ख़ास बनाए।
शायद इसलिए ही आपको मेरी चाय खूब लुभाए।।

जिस दिन मेरे दिल, एहसास यां रूह में आ गई मिलावट।
समझ जाओगे तब, जब आ जाएगी उस चाय की प्याली में कड़वाहट।।

इसलिए जो आपको मिलता वो चाये नहीं मेरे एहसासों और प्रेम का प्याला है।
इसलिए तो इस नुस्खे को मैंने अपने दिल में ख़ास संभाला है।।


© Vasudha Uttam