...

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जाने दो जो चला गया
#जाने-दो..!
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठगा गया।
बेवक्त जो वक्ता बना गया,
जीवन का राह दिखा गया।

व्यर्थ में जीवन कट रहा था,
अधर में जैसे लटक रहा था।
आँखों में कुछ खटक रहा था,
मृगतृष्णा में भटक रहा था।

अच्छा हुआ जो ठगा गया,
अच्छा हुआ जो वो चला गया।
भला बुरा वो सिखा गया,
जीवन का सार वो बता गया।

बुझ चुकी थी जो ज्ञान की ज्योति,
उस ज्योति को वो जला गया।
अंधकार से उबार कर वो,
जीवन में प्रकाश वो जला गया।

आनारी अज्ञानी कुम्हार था मैं,
चाक चलना सिखा गया।
स्वयं के हाथों पर स्वयं को,
विश्वास करना सिखा गया।

जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठगा गया।
बेवक्त जो वक्ता बना गया,
जीवन का राह दिखा गया।