जिंदगी उंगलियों में समेटती हूं
नजर भर देखती हूं।
तो शायद मैं जिंदगी उंगलियों में समेटती हूं।
जो मिला नहीं ।
उसकी चाह मे खुदको हर दिन कचोटती हूं।
घबराता है अक्ष भी मेरा , उसकी याद में।
मे कुरेदकर अपने जख्म ,घाव खुद भर लेती हू ।
शायद में जिंदगी,,,
उभरती...
तो शायद मैं जिंदगी उंगलियों में समेटती हूं।
जो मिला नहीं ।
उसकी चाह मे खुदको हर दिन कचोटती हूं।
घबराता है अक्ष भी मेरा , उसकी याद में।
मे कुरेदकर अपने जख्म ,घाव खुद भर लेती हू ।
शायद में जिंदगी,,,
उभरती...