...

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मौका
काश तू दे देती मौका
मैने न दिया ये धोखा
क्यों है इधर देखो खामोशी
मैंने कितनी बार चाहा
तुझे कितनी बार मनाया
लेकिन फिर भी
मुझे मिली मायूसी

वो जो दो नूर
गिरे थे ज़मी पे
क्या तू उसकी
कीमत जाने
क्या जो तूने लिए
फैसले
क्या वो फैसले थे
मनमाने

मैं भी अक्सर सोचा करूँ
अब मैं किस्से ये डरू
जो ये सपने जो पाले
क्या वो हर सपने
कचरे में डाले
अगर कुछ करना चाहता
तो किसने तुझे रोका
मैंने ना दिया ये धोखा

काश तू दे देती मौका
मैंने न दिया ये धोखा
क्यों है इधर खामोशी
मुझे बस मिली मायूसी
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