...

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ek tarasta insaan......
एक तरसता इंसान जो नहीं है बेईमान,
जब सारा जग है सोता क्यों सारी रात मैं रोता,
क्यों खुश कभी न होता कुछ अच्छा जो न होता,
बस एक सवाल है दिल में क्या होने वाला कल में,
मेहनत तो करता हूँ पर मेहनत नाकाफी है,
जो खर्च करता है रुपया उसको मिलती ट्रॉफी है,
मेरे बाप ने मुझको एक सीख दी जो अपनी जगह तो ठीक थी,
पर आज की दुनिया में जैसे दो रुपये की भीख थी,
उस एक सीख को लेकर जब मैं घर से निकला,
खूब पलट कर देखा पर मेरे बाप का दिल ना पिघला,
वो बोला कुछ बनके आये तब ही वापस आना,
खाली हाथ तो वापस आकर मुझे चेहरा मत दिखाना,
मैं भी बोला देख लो बापू आखरी बार मेरा ये चेहरा,
आऊँगा तब ही वापस जब...