...

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मन क्यों मौन ?
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
यही काम बार - बार करता है,

मौन रहकर कब तक ये बर्दास्त करेगा
तानों के तीरों के कैसे वार सहेगा ?
वचनों से दिल को तार - तार सहेगा ,
क्या ऐसा ही ये हर बार सहेगा ?

कैसे समझाऊं इसको, ये कोई सुलझाव नहीं,
मौन रहकर तो होता ,कोई भी बदलाव नहीं
मन तू चुप्पी तोड़ ले,शब्दों का आभाव नहीं
तब शायद होगा तेरा, भी कोई भाव कहीं,

टोकेगा - रोकेगा खुद को,किसको तेरी है परवाह
मौन रहे तू,यही तो है,दुनियां की अब तुझसे चाह
तुझको हिम्मत करनी होगी,ना डरना तू जरा
तेरे शब्दों से ही बनेगी , तेरे लिए अब नई राह

तेरे शब्दों से ही बनेगी ,तेरे लिए अब नई राह.....
© Munni Joshi