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क्या लिखूं
क्या लिखूं सोचता हूं तनहाई लिख दू।
घर से बिछड़ने का मंजर की जुदाई लिख दू।
किस्से तमाम मेरे सपनों की ख्वाहिश में।
रब से जो मांगी दुआए या कोई खुदाई लिख दू।
हासिल कभी ना होंगे ये किस्मत के पैमाने मुझे।
रहु ज़िंदा मै की मरने की दुहाई लिख दू।
© navneet chaubey
घर से बिछड़ने का मंजर की जुदाई लिख दू।
किस्से तमाम मेरे सपनों की ख्वाहिश में।
रब से जो मांगी दुआए या कोई खुदाई लिख दू।
हासिल कभी ना होंगे ये किस्मत के पैमाने मुझे।
रहु ज़िंदा मै की मरने की दुहाई लिख दू।
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