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बचपन
वह याद जो आज भी बचपन में वापस ले जाती है
कितनी ही कड़ियां है जो एक दूजे से जुड़ी जाती हैं।
क्या बताऊं? जब पेड़ पर चढ़े थे और धम्म गिरे थे
और जब फटे थे नए कपड़े तो कैसे डंडे पड़े थे।
जब २५ पैसे की कॉमिक लेकर पूरा मोहल्ला पढ़ता था
और कॉमिक खो जाने पर 1 रुपया भरना पड़ता था।
बातें बहुत हैं, कितनी गिनाऊं तुमको
सब याद हैं! कैसे भुलाऊं उनको ?
जब बजाके घंटी किसी की, हम नौ दो ग्यारह हो जाते थे
और पकड़े जाने पर भीगी बिल्ली से नजर आते थे।
रूह अफजा याद है ? हम गट गट पी जाते थे
तब कोला और पेप्सी के नाम कहां आते थे?
एक छोटी सी गुड़िया थी जो आंखें बंद करती थी
मेरी दोपहरें सारी उस को सुलाने में गुजरती थी।
भूकंप जैसे झटके सुबह शाम खा खा के हम बड़े हुए हैं क्योंकि
मालगाड़ी उस समय मेरे घर के सामने से गुजरती थी।
रातों को तारे गिनना, मिट्टी के खिलौने और दीवारें लांघ कर पड़ोसी के घर जाना
और कैंची की साइकिल सीखते गिर –गिर कर घुटने तुड़वाना ।
और बहुत हैं बातें, जो मैंने अभी बताई नहीं
मन में रख ली है सहेज के, ना भूल जाऊं कहीं।
ऐसा था खट्टा–मीठा बचपन और अनगिनत थी घटनाएं
बाल दिवस की आप सभी को शुभकामनाएं।
#childrensday
© ATQ
कितनी ही कड़ियां है जो एक दूजे से जुड़ी जाती हैं।
क्या बताऊं? जब पेड़ पर चढ़े थे और धम्म गिरे थे
और जब फटे थे नए कपड़े तो कैसे डंडे पड़े थे।
जब २५ पैसे की कॉमिक लेकर पूरा मोहल्ला पढ़ता था
और कॉमिक खो जाने पर 1 रुपया भरना पड़ता था।
बातें बहुत हैं, कितनी गिनाऊं तुमको
सब याद हैं! कैसे भुलाऊं उनको ?
जब बजाके घंटी किसी की, हम नौ दो ग्यारह हो जाते थे
और पकड़े जाने पर भीगी बिल्ली से नजर आते थे।
रूह अफजा याद है ? हम गट गट पी जाते थे
तब कोला और पेप्सी के नाम कहां आते थे?
एक छोटी सी गुड़िया थी जो आंखें बंद करती थी
मेरी दोपहरें सारी उस को सुलाने में गुजरती थी।
भूकंप जैसे झटके सुबह शाम खा खा के हम बड़े हुए हैं क्योंकि
मालगाड़ी उस समय मेरे घर के सामने से गुजरती थी।
रातों को तारे गिनना, मिट्टी के खिलौने और दीवारें लांघ कर पड़ोसी के घर जाना
और कैंची की साइकिल सीखते गिर –गिर कर घुटने तुड़वाना ।
और बहुत हैं बातें, जो मैंने अभी बताई नहीं
मन में रख ली है सहेज के, ना भूल जाऊं कहीं।
ऐसा था खट्टा–मीठा बचपन और अनगिनत थी घटनाएं
बाल दिवस की आप सभी को शुभकामनाएं।
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