...

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कविता…तुम
कविता…तुम
एक परिकल्पना हो

जो मुझे मिलाती है
कहीं किसी अनजाने कोने में
छुपकर बैठे हुए मुझसे ही

और बतियाती है
किसी पुराने दोस्त की तरह

कविता…तुम
सम्भवतया आईना हो
मेरे ही जज़्बातों का …
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