...

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~हम मिले कैसे ~
ताज्जुब होता है
आख़िर हम मिले तो मिले कैसे .....

वो कौन सी चादर थी जो मज़ार पर चढ़ी थी
वो कौन सी आयत थी जो हमने सुनी थी
वो कौन सी इबादत थी
जो उस तलक गई थी
वो कौन सी ललक थी जो अधीर बन गई थी

वो कौन सा धागा था और किसने बुना था
वो कौन सा ताबीज़ था और किसने पढ़ा था
वो कौन सा सिरा था जो बरगद से बंधा था

वो कौन सा क़दम था जो आगे बढ़ा था
कौन सा सिक्का था जो मिट्टी में गढ़ा था

वो कौन सा पल था जो आकर रुक गया था
वो कौन सा अहसास था और किस में जगा था
वो कौन सा लम्हा था जो वक़्त में पिघला था
वो कौन सा सितारा था जो रौशन कर गया था

वो कौन सी आवाज़ थी जो हमसे कह गई थी
वो कैसी चाहत थी जो ओस में पली थी
वो कौन सी दूरी थी जो पास आ गई थी
वो कौन सी नज़दीकी थी
जो दूरी में बटी थी
ताज्जुब होता है
आखिर हम मिले तो मिले कैसे !!

धन्यवाद
स्वरचित
अनु माथुर ✍️


© Anu Mathur