...

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अधूरापन सब के अन्दर पल रहा है
वक़्त ढल रहा है हर पल बदल रहा है
इंसान की आँखों में मग़र ख़्वाब चल रहा है

हसरत-ए-ख्वाहिश लिए दिल में हर शख़्स
अन्दर ही अन्दर अपने हर रोज़ जल रहा है

कहने को तो सैकड़ो दोस्त हैं सबके मग़र
एक अधूरापन सब के अन्दर पल रहा है

नाउम्मीद, निराशा, बैचैनी, ख़लिश लिए इंसान
ख़ुद ही ख़ुद को जाने कितना खल रहा है

यूँ ही गुज़र जाने का नाम है ज़िन्दगी "गौरव"
इंसान का वजूद और इंसानियत सब ढल रहा है।

© Gaurav J "वैरागी"
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