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दुख!
धरती का दुख दिखता है तुझे,
तो आकर ज़रा उसको सहला दे।
बिखरे यहाँ हैं टुकड़े कई,
तू आकर के उनको यकजा कर।
अहसास ज़रा सा बाक़ी हो जिनमें,
मुझे लोग ऐंसे तू दिखला दे।
वो भी आँसुओं को समझेंगे एक दिन,
एक घूंट उनको भी तू पिला दे।
वतन के लुटेरे वतन के हैं हाकिम,
कोई मोहसिनों को ये बतला दे।
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