शब सोचता रहा...
तुम्हारे लम्स में अब कोई बात ना रहा ,
तुमसे कैसे मिले गले...
अब इस हयात में वो जज़्बात ना रहा ।
वो दिन भी अलग थे बड़े...
कोई शब,कोई सुबह जब हर घड़ी तू साथ ही रहा ,
तेरे ज़हन में तो ,अब एक कोना भी, हमारा ना रहा ।
किसके लिए जाए काम पे, वो शब सोचता रहा,
मैं टूटता रहा,घर बाजार सब छूटता रहा,
हमारे बग़ैर तुम्हारा वो जो ,
अलग ही जब, कोई कायनात बनता रहा ।
© ya waris
तुमसे कैसे मिले गले...
अब इस हयात में वो जज़्बात ना रहा ।
वो दिन भी अलग थे बड़े...
कोई शब,कोई सुबह जब हर घड़ी तू साथ ही रहा ,
तेरे ज़हन में तो ,अब एक कोना भी, हमारा ना रहा ।
किसके लिए जाए काम पे, वो शब सोचता रहा,
मैं टूटता रहा,घर बाजार सब छूटता रहा,
हमारे बग़ैर तुम्हारा वो जो ,
अलग ही जब, कोई कायनात बनता रहा ।
© ya waris