...

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/ग़ज़ल : संग तेरे था मगर तनहा रहा/
2122/2122/212
फूलों की महफ़िल में मैं काँटा रहा
संग तेरे था मगर तनहा रहा

मेरी किस्मत में समंदर था नहीं
एक दरिया होके भी प्यासा रहा

सब ने ख़ुद को देखा मेरी ग़ज़लों में
मैं जमाने के लिए शीशा रहा

लौट कर जो घर न वापस आ सके
ज़ीस्त के शतरंज का प्यादा रहा

ग़म ...