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/ग़ज़ल : संग तेरे था मगर तनहा रहा/
2122/2122/212
फूलों की महफ़िल में मैं काँटा रहा
संग तेरे था मगर तनहा रहा

मेरी किस्मत में समंदर था नहीं
एक दरिया होके भी प्यासा रहा

सब ने ख़ुद को देखा मेरी ग़ज़लों में
मैं जमाने के लिए शीशा रहा

लौट कर जो घर न वापस आ सके
ज़ीस्त के शतरंज का प्यादा रहा

ग़म भुलाया सब ने शे'रों से मेरे
मैं तेरे जाने का ग़म लिखता रहा

जिंदगी भर जिंदगी से हारकर
जिंदगी के वास्ते लड़ता रहा

होश वाले ज़ीस्त में उलझे रहे
रिंद था मैं जाम छलकाता रहा

एक सिक्का है मगर दो पहलू हैं
फ़र्क तो केवल नज़रिये का रहा
आप को दिखती है आती जनवरी
मुझको दिखता फ़िर दिसंबर आ रहा

'शम्स' तूने ही नहीं खोजा मुझे
मैं तो तुझको हर जगह पाता रहा


बह्र : 2122/2122/212

#Shayri #Poetry #Ghazal


© 'शम्स'