जाने ये फिज़ा क्यों गमगीन होने लगी
जाने फिज़ा क्यों गमगीन होने लगी
रात कांधे पे सर रख कर रोने लगी
जिस मकां में जल गए थे अरमां सारे
खामोशी आंगन आंसुओं से धोने लगी
देती रही रात...
रात कांधे पे सर रख कर रोने लगी
जिस मकां में जल गए थे अरमां सारे
खामोशी आंगन आंसुओं से धोने लगी
देती रही रात...