...

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सिलसिला...
मेरे सपने हमेशा पूरे होतें हैं
पर, हर बार अधूरे होतें हैं..
उस अधूरेपन को मुक्कमल
करने की जद्दोजहद में
मैं, फ़िर से लग जाता हूँ..
औऱ फ़िर, इक नया ख्वाब
देखने लग जाता हूँ..
ना ये सिलसिला ख़त्म होता है
औऱ, ना ही ये दौर..
न जाने कितने ख्वाब
मुक्कमल करने होंगे औऱ..


© Rajnish Ranjan