...

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मामूली सा अस्तित्व
#मे राहगीर नहीं राह हूं,
मुझें कहीं पहुंचना ही नहीं।
मे सफर नहीं सफरी हूं,
मुझें कहीं समाना ही नहीं।
मुझें किसी के नजर मे
ना आने का कोई गम नहीं।
क्यों की हवा के बदौलत जीने वाला
इंसान भी हवा को नहीं देखता।
किसी की साया ना मिलने का गम नहीं मुझे, क्यों की जितनी भी धुप और बरसात हो
पेड़ को...