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भक्ति के पद
हरि ! तुम हरो जन की भीर द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर । भक्त कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर। हिरनकश्यप मार लीनो, धर्यो नाहिन धीर। बूडते गज ग्राह मार्यो, कियो बाहर नीर।...