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पति परमेश्वर
पति-परमेश्वर

हमने जब-जब,
पति को परमेश्वर बनाया,
वो कभी पति तो बना नहीं,
लेकिन हमेशा ख़ुद को
शक्तिशाली, ताकतवर, बलवान बनाकर,
परमेश्वर बने रहने की पूरी कोशिश किया।
मैं उसे अपना संरक्षक मानकर,
हमेशा पूजती हुई,
ये सोचती रहीं कि,
काश! मैं उसे बस,
अपना एक साथी बना पाती,
जो सुनता हमारी गलतियों को,
बिना न्याय संगत हुए।
जो रोता हमारी आंसुओ के धार के साथ,
पोछता हमारी आंसू को,
जैसे पोछती हैं मेरी आंचल,
बिना कृपालु बने।

अखण्ड प्रताप 'हितैषी'