...

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जिंदगी [एक अनुभव]
उठा पटक सी चल रही
है जिंदगी की जंग में
सलीका कही नही
बेहूदगी से तंग मैं
संभल रहा ये सोच लूं
मान लूं संभल गया
गिरूं तो फिर यकीन हो
है चोट अंग- अंग में
बेवकूफी की भंग में
गया था रंग मैं
खुले जो फिर नजर कहीं
दिखे ना साफ कुछ कहीं
धुंधले इस जहान में
चमक मुझे मिले कहीं
बन राही पथ पे बढ़ चला
ना साथ कोई संग है
मंजिल की तलाश है
बस चला इसी उमंग में
उठा पटक सी चल रही
जिंदगी की जंग में।
सलीका कही नहीं
बेहूदगी से तंग मैं।


© कलम की जुबां से__✒️