जिंदगी [एक अनुभव]
उठा पटक सी चल रही
है जिंदगी की जंग में
सलीका कही नही
बेहूदगी से तंग मैं
संभल रहा ये सोच लूं
मान लूं संभल गया
गिरूं तो फिर यकीन हो
है चोट अंग- अंग में
बेवकूफी की भंग में
गया...
है जिंदगी की जंग में
सलीका कही नही
बेहूदगी से तंग मैं
संभल रहा ये सोच लूं
मान लूं संभल गया
गिरूं तो फिर यकीन हो
है चोट अंग- अंग में
बेवकूफी की भंग में
गया...