बनावटी ईश्क़
ईश्क़ बनावटी था मेरा,
आँखों की चमक झूठी थीं,
निगाहें धोख़ा थीं मेरी,
मुस्कुराहट बरसों पुरानी थीं,
याद हैं हमें,जो तस्वीर दिल में छुपायी थीं,
अब उसे संभालना मुमकिन नहीं।
हक नहीं मेरा उन पर,
तो उन पर हक जताउ कैसे,
दिल हमारा एक था हीं नहीं,
तो दिल एक बताऊ कैसे।
जज़्बात झूठें थे मेरे,
अल्फ़ाज़ बेबुनियाद थे,
हालातों का एक साथी था ईश्क़ मेरा,
तन्हा रातों का सुकून था ईश्क़ मेरा,
खोयी राहों का मंजिल था ईश्क़ मेरा,
पागल सी भाग रही थी मैं,जिंदगी का ठहराव ईश्क़ मेरा,
खामोशी में बातें था ईश्क़ मेरा,
दर्द में राहत था ईश्क़ मेरा।
उसकी निगाहें जादू थीं मेरे लिए,
घुँघराले बाल कालीं घटायें जैसे,
मुस्कुराहट बच्चों जैसी,
आदतें मासूम थीं,
वो चाँद हैं धरती पर कोई,
यकीन नहीं होता की,
वो कभी मेरा था ही नहीं।
दिल झूठी कहानियाँ बनाता हैं उसके साथ की,
हर रात ख्वाबों की दुनिया बसाता हैं,
दिल के पास होने का झूठा अहसास दिलाता हैं,
यादों में अपनीं जगह बनाता हैं।
हकीकत से दूर कही जिंदगीं बसाता है,
ईश्क़ मेरा,
हाथ थामें कहीं दूर मुझें खुद से ले जाता हैं,
ईश्क मेरा,
समुद्र किनारे बैठ,चादनी रातों में वक़्त बिताता है,
ईश्क़ मेरा।
सवेरे का सूरज मेरे रातों के सारे ख्वाब खोल देता हैं,
पर्दा गिरा कर खिड़की पर मैं,
वापस अपने बनावटी ईश्क़ की दुनिया में,
लौट जातीं हु।
© shivika chaudhary
आँखों की चमक झूठी थीं,
निगाहें धोख़ा थीं मेरी,
मुस्कुराहट बरसों पुरानी थीं,
याद हैं हमें,जो तस्वीर दिल में छुपायी थीं,
अब उसे संभालना मुमकिन नहीं।
हक नहीं मेरा उन पर,
तो उन पर हक जताउ कैसे,
दिल हमारा एक था हीं नहीं,
तो दिल एक बताऊ कैसे।
जज़्बात झूठें थे मेरे,
अल्फ़ाज़ बेबुनियाद थे,
हालातों का एक साथी था ईश्क़ मेरा,
तन्हा रातों का सुकून था ईश्क़ मेरा,
खोयी राहों का मंजिल था ईश्क़ मेरा,
पागल सी भाग रही थी मैं,जिंदगी का ठहराव ईश्क़ मेरा,
खामोशी में बातें था ईश्क़ मेरा,
दर्द में राहत था ईश्क़ मेरा।
उसकी निगाहें जादू थीं मेरे लिए,
घुँघराले बाल कालीं घटायें जैसे,
मुस्कुराहट बच्चों जैसी,
आदतें मासूम थीं,
वो चाँद हैं धरती पर कोई,
यकीन नहीं होता की,
वो कभी मेरा था ही नहीं।
दिल झूठी कहानियाँ बनाता हैं उसके साथ की,
हर रात ख्वाबों की दुनिया बसाता हैं,
दिल के पास होने का झूठा अहसास दिलाता हैं,
यादों में अपनीं जगह बनाता हैं।
हकीकत से दूर कही जिंदगीं बसाता है,
ईश्क़ मेरा,
हाथ थामें कहीं दूर मुझें खुद से ले जाता हैं,
ईश्क मेरा,
समुद्र किनारे बैठ,चादनी रातों में वक़्त बिताता है,
ईश्क़ मेरा।
सवेरे का सूरज मेरे रातों के सारे ख्वाब खोल देता हैं,
पर्दा गिरा कर खिड़की पर मैं,
वापस अपने बनावटी ईश्क़ की दुनिया में,
लौट जातीं हु।
© shivika chaudhary