मनुष्य जब लांघता है अपनी सीमाएं
जब जब मनुष्य लांघता है अपनी सीमाएं
भूल जाता है सारी हदें
और तोड़ता है प्रकृति के धैर्य को
उसी क्षण क्रोधित प्रकृति रचती है एक व्यूह
और चलाती है...
भूल जाता है सारी हदें
और तोड़ता है प्रकृति के धैर्य को
उसी क्षण क्रोधित प्रकृति रचती है एक व्यूह
और चलाती है...