...

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मनुष्य जब लांघता है अपनी सीमाएं
जब जब मनुष्य लांघता है अपनी सीमाएं
भूल जाता है सारी हदें
और तोड़ता है प्रकृति के धैर्य को
उसी क्षण क्रोधित प्रकृति रचती है एक व्यूह
और चलाती है एक ऐसा विनाश चक्र
जिसमें फंसा समस्त संसार
असहाय हो देखता है विनाश लीला
और प्रकृति का तांडव...
तब होता है बोध
विज्ञान से परे एक अदृश्य शक्ति का
जिसे चुनौती देना
सारी मानवजाति को डूबा सकता है...अंधकार के गहरे गर्त में...!!