फ़ौज! ~ ग़ज़ल
फ़ौजियों के तेवरों से पीछे हटेगा बोना इंसान ही,
झूम-झूम कर नाच नाचेंगे हिन्दुस्ताँ में इंसाँ कोई।
इस ज़मीं के खेतों में हुस्न-ए-दिल-आरा आ गई,
वहाँ तूफान का मौसम रहेगा न होगा वीराँ कोई।
फ़ौज की बदौलत मुक्कमल है जश्न-ए-आज़ादी,
नहीं तो हम होते किसी चीनी के ही बागबाँ...
झूम-झूम कर नाच नाचेंगे हिन्दुस्ताँ में इंसाँ कोई।
इस ज़मीं के खेतों में हुस्न-ए-दिल-आरा आ गई,
वहाँ तूफान का मौसम रहेगा न होगा वीराँ कोई।
फ़ौज की बदौलत मुक्कमल है जश्न-ए-आज़ादी,
नहीं तो हम होते किसी चीनी के ही बागबाँ...