...

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गुफ्तगू_की_अधूरी_आरज़ू
निगाहों में शिकायतों का पानी है
आजकल बातों में आनाकानी है
वक़्त की उलझनों का हिसाब है
बस मजबूरियों की ही कहानी है

सरेआम इल्ज़ामों का ज़िक्र उठा है
बढ़ती हुई दूरियों की कैसी नादानी है
गुफ्तगू की अधूरी आरज़ू समेटकर चले
नजदिकियों में ये कैसी खींचा-तानी है

आहिस्ता-आहिस्ता सांझ भी ढल गई
निगाहों में इंतजार की इक रवानी है
कैसे उन भावनाओं की कीमत चुकाएं
आज वक़्त से थोड़ी - थोड़ी दुश्मनी है

मजबूरियों की उलझनें में यूं उलझें है
क्या करें साहिब हालातों की मनमानी है
बढ़ती हुई दूरियों की कीमतें क्या बताऊं
चारों तरफ बस शिकायतें की ही वाणी है

हर कोई नजरअंदाजी का इल्ज़ाम लगा गया
बग़ावत के तज़ुर्बे की ये कैसी ग़लत-बयानी है
बातों में ख़ामोशियों के तमाशे मशहूर हो गए
निगाहों में शिकायतों का आज कल पानी है

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes