मुहब्बत है इबादत
नहीं ज़िंदगी में है कोई शरारा
बना राख़ का ढ़ेर है जिस्म सारा
नहीं कोई देगा तुम्हें हाथ अपना
कहां डूबते को है मिलता किनारा
है किस को पड़ी दूसरों की खुशी की
किसे दर्द है दूसरों का गवारा
कहो...
बना राख़ का ढ़ेर है जिस्म सारा
नहीं कोई देगा तुम्हें हाथ अपना
कहां डूबते को है मिलता किनारा
है किस को पड़ी दूसरों की खुशी की
किसे दर्द है दूसरों का गवारा
कहो...