...

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ख़ुदा है सबका
चाहतें ऐसी कि तुम बिन तो गुज़ारा ही न हो
ज़िंदगी में और जीने का सहारा ही न हो

ये न सोचो इश्क़ में क्या है नफ़ा नुकसान हुआ
इश्क़ में ये तो नहीं है कि खसारा ही न हो

हर मुसीबत में हमेशा काम आए दोस्ती
दोस्ती ये तो न हो कोई सहारा ही न हो

क्या बिगाड़ा है तिरा ऐ ज़िंदगी कुछ तो बता
ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो

ज़िंदगी भर क्यों रहा मुझसे गिला तुमको बता
ये नहीं हमने कभी तुमको पुकारा ही न हो

चांद तन्हा आसमां तन्हा है तन्हा ये जहां
ये न हो मेरे सफ़र में इक सितारा ही न हो

ना समझ ख़ुद को अकेला है खुदा सब का यहां
ये नहीं कि बेसहारों का सहारा ही न हो

बहर : 2122 2122 2122 212
© अमरीश अग्रवाल "मासूम"