अल्फ़ाज़
चलो मान लिया हम एक नहीं हो पाएंगे,
कल यू छूपते- छुपाते एक दूसरे से मिलने नहीं आयेंगे,
यूं बारिशों में भीगते हुए एक दूसरे में फिर ना बह पाएंगे
चांद- तारों, साहिल-मझधार, जैसी बातों से एक दूसरे को नहीं रिझा पाएंगे,
फिर हक़ीक़त में ख्वाबों को नहीं संजो...
कल यू छूपते- छुपाते एक दूसरे से मिलने नहीं आयेंगे,
यूं बारिशों में भीगते हुए एक दूसरे में फिर ना बह पाएंगे
चांद- तारों, साहिल-मझधार, जैसी बातों से एक दूसरे को नहीं रिझा पाएंगे,
फिर हक़ीक़त में ख्वाबों को नहीं संजो...