...

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स्वार्थ
पता है एक सबक मिला हर सबक के बाद,
अपनों में भी कहीं कोई अपना नहीं होता है,

जंगल की आग को भले दावाग्नि कहते हों,
मगर दांव पर आग तो इंसान लिए फिरता है,

सुनो कब हुआ तंहा दिल मायूस भला,...