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चाहु तो
चाहु तो तुझ ही लिखती राहु
शाम सवेरे तुझे ही निहारती राहु
सोचू तो तुम्हारी इस मुकुराहट को
मालूम होता दुख पर तब भी मुस्कुराता ही रहता
देखू तो इन आंखों को जिनमे
राज है गहरा होता
लेकिन फिर भी कुछ नही कहेता
कोई और समझे तो समझता ही रह जाए
और तुम्मे उलझता ही रह जाय
कौन करता है ऐसा
कितना चाहती मगर कुछ न बताती
पराए को भी अपना बनाती
करू मैं तुम पर क्या वर्णन
बस यही सोच में रहता मन
© palupuchi
शाम सवेरे तुझे ही निहारती राहु
सोचू तो तुम्हारी इस मुकुराहट को
मालूम होता दुख पर तब भी मुस्कुराता ही रहता
देखू तो इन आंखों को जिनमे
राज है गहरा होता
लेकिन फिर भी कुछ नही कहेता
कोई और समझे तो समझता ही रह जाए
और तुम्मे उलझता ही रह जाय
कौन करता है ऐसा
कितना चाहती मगर कुछ न बताती
पराए को भी अपना बनाती
करू मैं तुम पर क्या वर्णन
बस यही सोच में रहता मन
© palupuchi
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