...

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सुनो!
तुम्हारे लिए लिखी सारी कविताएं मैं
जंगल और पहाड़ों में छोड़ आती हूं

मैं चाहती हूं की सर्द हवाएं
जब तुम्हे छू कर गुजरें तो
उनमें घुले शब्द,तुम्हे महसूस हो

कई बार बैठ जाती हूं किसी नदी किनारे
और उकेर देती हूं, लहरों पर तुम्हारा नाम

वो नाम जो मेरे हिस्से नही आया
और एक दाग सा लगा मेरे वजूद पर कई बार

तमाम कोशिशें बेकार गईं
तुम्हें पाने की
वैसे ही जैसे
बारिश की बूंदों को
हथेली में समेट लेने की कोशिश

हसरतों का क्या है
ये आए दिन उमड़ती हैं
और बन जाती हैं
कई बार किसी की
मस्त आंखों का दरिया

मुझे अच्छा लगता है
नदियों का कलकल करना
जैसे तुमने मेरा नाम पुकारा हो
दूर उन पहाड़ों से
जहां से हर पुकार
गूंजती है और सुनाई देती है
कई बार एक संगीत की तरह

मैं बेसुरी सी तुम्हारे सुर
गुनगुनाती हूं
तुम्हे अनजाने में
आज भी अपना बताती हूं

तो बताओ इस बसंत
करूं फिर से
तुम्हारा न खतम होने वाला
वो एक लम्बा इंतजार
या जाने दूं
इस बार इस रस्म को
बिना निभाए खत्म कर दूं

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© life🧬