"तुम"
दिल और ज़हन पे कुछ ऐसे छा गई हो तुम
हर एक वक़्त ख़यालों में आ रही हो तुम
नहीं मैं फूलों का क़ायल, न चाँदनी की तलब
मेरी हयात की ख़ुशबू हो, रौशनी हो तुम
झगड़ना, रूठना, शिकवे-गिले सदा करना
ये बे-सबब तो नहीं है न, जानती हो तुम
तुम्हारे ज़िक्र से रहती मिठास लहजे में
मेरी ज़ुबान की...
हर एक वक़्त ख़यालों में आ रही हो तुम
नहीं मैं फूलों का क़ायल, न चाँदनी की तलब
मेरी हयात की ख़ुशबू हो, रौशनी हो तुम
झगड़ना, रूठना, शिकवे-गिले सदा करना
ये बे-सबब तो नहीं है न, जानती हो तुम
तुम्हारे ज़िक्र से रहती मिठास लहजे में
मेरी ज़ुबान की...