...

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"तुम"
दिल और ज़हन पे कुछ ऐसे छा गई हो तुम
हर एक वक़्त ख़यालों में आ रही हो तुम

नहीं मैं फूलों का क़ायल, न चाँदनी की तलब
मेरी हयात की ख़ुशबू हो, रौशनी हो तुम

झगड़ना, रूठना, शिकवे-गिले सदा करना
ये बे-सबब तो नहीं है न, जानती हो तुम

तुम्हारे ज़िक्र से रहती मिठास लहजे में
मेरी ज़ुबान की लज़्ज़त हो, चाशनी हो तुम

मैं क्यूँ तलाश करूँ तुम सा कोई और यहाँ
मैं जानता हूँ, जहाँ भर में एक ही हो तुम

तुम्हारे आने से जीता हूँ, मरता जाने से
कि मेरी ज़िन्दगी भी तुम हो, मौत भी हो तुम

हक़ीक़तन तो बहुत चुप सी बैठी रहती हो
मेरे ख़यालों में पर कितना बोलती हो तुम

है एक जलता हुआ दिल हमारा आतिश-दान
और उस पे ओस के जैसी टपक रही हो तुम

तुम्हें जो देखूँ तो मुझ को ख़याल आते हैं
मेरा सुख़न हो , ग़ज़ल तुम हो, शाइरी हो तुम

© Rehan Mirza