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ग़ज़ल
राधा राणा की कलम से.. ✍️
अजनबी बनकर रहे हम ज़िंदगी भर।
बात तक ना की कभी खुद से घड़ी भर।
ना करो इन्कार,इस दिल में बसा लो,
चाहिए दिल के शहर में झोपड़ी भर।
दूर करने को अंधेरा ज़िंदगी का,
चाहिए हमको उजाला कोठरी भर।
मुट्ठियां भरके मिली खुशियां हैं हमको,
ग़म मिले हमको हमारे टोकरी भर।
की नहीं हमसे मुहब्बत ज़िंदगी ने,
ज़िंदगी ने भी निभाई दोस्ती भर।
2122 2122 2122
अजनबी बनकर रहे हम ज़िंदगी भर।
बात तक ना की कभी खुद से घड़ी भर।
ना करो इन्कार,इस दिल में बसा लो,
चाहिए दिल के शहर में झोपड़ी भर।
दूर करने को अंधेरा ज़िंदगी का,
चाहिए हमको उजाला कोठरी भर।
मुट्ठियां भरके मिली खुशियां हैं हमको,
ग़म मिले हमको हमारे टोकरी भर।
की नहीं हमसे मुहब्बत ज़िंदगी ने,
ज़िंदगी ने भी निभाई दोस्ती भर।
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