...

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रातों की फ़ितरत
रातों की फ़ितरत फिर बदल गयी,
चांद की रोशनी फिर अमावस से ढक गयी।

जिस एक के लिए खोला था दिल,
देखो वो तस्वीर भी आज निकल गयी।

समंदर की लहरों में अकेला तहर रहा था,
किनारा देखा तो रुकने का मन हुआ।

गलती ज़ज़्बातों की थीं,
या हालातों का दोष था।

कि हम समुंदर की गहराईयों में,
सूरज की रोशनी ढूँढने निकले।

बेगाने जहां में सुकुन की बात करने चले,
हँसने की उम्र में कहाँ,
खुद को तिजोरियों मे बंद करने लगे।

आईनें में देखा खुद को तो पता चला,
कि हम बदलनें लगे।

आसमां की और देख क्यों उन्हें दोष देने लगे,
जो जा चुका हाथ छोड़ कर,
हम क्यों उन्हें अपने दिल में जगह देने लगे।

एक बार फिर हमनें चांद की तरफ देखा,
और मुस्कुरा कर फिर उन अंधेरी सड़कों पर अकेले चलने लगे।
© shivika chaudhary