...

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इक रीत पुरानी बाकी है
इक रीत पुरानी बाकी है
इक प्रीत पुरानी बाकी है
शायद बातें तुम भूल गये
पन्नों पर स्याही बाकी है

अल्हड़ता वो नादानी
तेरी मेरी वो बचकानी
खट्टी-मीठी, तीखी सी
याद करो वो बेमानी
जब कहते थे तुम, मैं का अब हम हो जाना बाकी है
इन किस्सों पर रिश्ते की बस जिल्द चढ़ाना बाकी है

तन्हा है कुछ ख्वाब मेरे
जो नयन तुम्हारे आये थे
होकर आनंदित तुमने जो
होठों पर गीत सजाये थे
कुछ वादे भी है कसमें भी जिन्हें भूल बताना बाकी है
उन लम्हों और उन गुलाब का धूल हो जाना बाकी है
© ©meenu🌸