...

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हर रोज नई सुबह होती है
हर रोज,
नई सुबह होती है,
हर रोज,
खुद से एक नई
ज़ंग शुरू होती है,
कभी जीतती हूँ,
कभी हारती हूँ,
कभी टूटती हूँ,
कभी बिखरती हूँ,
कभी लड़खड़ाती हूँ,

फिर संभलती हूँ,
हौसले की दिया
रोज जलाती हूँ,
खुद को रोज नया
रस्ता दिखाती हूँ,
मंज़िल तो मिलनी है,
भले ही कुछ देर लगनी है,
एक दिन ख़्वाब तुम्हारे,
तुम्हें गले जरूर लगाएँगे,
तुम्हारे अपनों की आँखें
भी मुस्कुराएँगी,
एक दिन तुम भी अपनी
जीत की जश्न मनाओगी,
मंज़िल तुम्हारे क़दम जरूर चूमेगी।
F.S.
#Saaz




© Saaz