...

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तुम मेरे क्या लगते हो
शराब पी कर सुकून से सो गया
तुम मेरे क्या लगते हो
मैं जैसा था वापस वैसा हो गया
तुम मेरे क्या लगते हो

वहम था के क्या होगा
जब तू मुझसे जुदा होगा
हुआ कुछ नही रात भर बस बादल बरसे
तुम मेरे क्या लगते हो
तेरा दिल नही ऐसा जो तेरे दिल को मेरा दिल तरसे
तुम मेरे क्या लगते हो

लिखता तब भी था अब भी हूं नज्मों में गम
तेरा पास क्या है बता मेरे पास है कलम
यार प्यार रिश्तेदार क्या कुछ नही तुम्हारे पास
तुम मेरे क्या लगते हो
कुछ भी नही मुझमें मेरे जैसा खास
तुम मेरे क्या लगते हो

खुले आसमां में , बंद जुबां से
सुने सहराओ में
तेरे शहर में, मेरे गांव में
पीपल की छांव में
थका सा हारा सा
कोई बेचारा सा
टूटा परिंदा ,
मुर्दा ना जिंदा ,
तूफानों से लड़कर,
इश्क में पड़कर ,
लश्कर ए आंखो से जख्मी हुआ है
सावन जिसने कभी होठों से छुआ है
उसको संभालूं
या खुद को बचा लूं
सच है झूठ
आयना निकालूं
तराजू में रख दूं
या बाजू में सूला दूं
खुद को जला दूं
या आग लगा दूं
ये जलते हुए कागज
ये इश्क ये खत
वो कासीद जो लाता था
इनको फकत
उसको क्या बोलूं
मसलसल ना होगा
सिलसिला ये
अब कल ना होगा
मेरे चेहरे की रौनक ना लौटेगी कभी
खैर तुम अब भी जवां लगते हो
मैं जैसा था वापस वैसा हो गया
तुम मेरे क्या लगते हो

© दीप